Monday, January 12, 2015

अवघा देह विठ्ठलमय व्हावा

 
अवघा देह विठ्ठलमय व्हावा
आता न उरावा दुजाभाव
मुखे हरीनाम सदा नको अन्य काही
श्रीहरी इतुकेच द्यावे मज आता

तूच भगवंता  सभोवती व्यापिलासे
मग मजला का न दिसे अतरंगी
सगुण तुज पाहण्या न्यावे पंढरीशी
निर्गुणत्व प्रकाषावे माझ्या अंतरी

माउली माझी आहे आळन्दिसी
तिजला काळजी माजी आसे
हरिनामाची गोडी लाविली तिने
हरिपाठ थोर मिटविला घोर




पंछी की उड़ान

 पंछी की उड़ान एक नन्हा तालाब का पंछी सुनता गरूड़ो की कहानियाँ,  उसे बहुत पसंद आती  पहाड़ों की ऊंचाइयाँ। फिर उसने देखा एक ख्वाब और दिल में इ...