पंछी की उड़ान
एक नन्हा तालाब का पंछी
सुनता गरूड़ो की कहानियाँ,
उसे बहुत पसंद आती
पहाड़ों की ऊंचाइयाँ।
फिर उसने देखा एक ख्वाब
और दिल में इच्छा जाग उठी,
पहाड़ों पर तो जाना ही है
ऐसी उसको एक तलब लगी।
"तुम्हारे बस की बात नहीं"
ऐसा सब पंछियों ने कहा,
वह लगातार यह कहते रहे
और उसको रोकना चाहा।
परंतु उस पंछी ने ठान ली,
अपनी खुद की बात ही मान ली,
फिर सौ बार उसने प्रयास किया
और सफलता भी उसने पा ली।
फिर छू लिया उसने गगन को,
सूरज की सुनहरी किरणों को,
और ऊंची उड़ान भर के
उन सुंदर लहराती हवाओं को।
पहुंच गया वह उसके सपनों के पहाड़ों पर
और एक नई कहावत बन गई,
एक तालाब का पंछी आसमान छू गया
और एक नई कहानी बन गई।
Siddhi Patil