भौतिक जीवन का मुख्य नियम भूल गए हम
प्रकाश बनता सात रंगों से भूल गए हम
धर्म को जाना हमने रंगोसे
स्टेटस को पहचाना हमने कर्मोसे
बहती नदियों का महत्व भूल गए हम
अब तो फिल्टरसे आये जल कोही शुद्ध समझ लिये हम
डटके खड़े पेडोको काटते चले हम
धुल, गर्मी, बारिश, सर्दी पे और चिल्लाते चले हम
पर्यावरण चक्र फसा अब किताबो में
धून्डने पड़ते दुर्बिनसे प्राणी जंगलोमें
नौबत तो अब यहाँ तक आ पड़ी
खोजते फिरते जंगल पर्यटन के लिए
क्या ये सब कर रहे हम विकास के लिए ?
क्यों हो गयी हमारी दृष्टी इतनी कमजोर ?
क्यों नहीं सुनाई देता धरती के विनाश का शोर?